कहते हैं मीडिया समाज में जागरूकता, ज्ञान, और संस्कृति आदि की प्रचारक होती है, लेकिन इसका उपयोग अगर सकारात्मक रूप से स्वार्थ से परे हटकर करा जाये तो । मीडिया में तो वह क्षमता है कि राक्षस को देवता, और देवता को राक्षस, पत्थर को देवता, रातों-रात किसी को महान या किसी को रातों-रात डिफेम कर दे । लेकिन क्षेत्र कोई भी हो जब कोई भी काम स्वार्थ से लिप्त गलत भावना से किया जाता है, मनुष्य बहुत दिन तक अपने अस्तित्व को ही नहीं साथ ही उस क्षेत्र को भी बदनाम करता है, जिसमें वह काम कर रहा है । १७ सितंबर २०१० को आईबीएन सेवन न्यूज चैनल में एक स्टिंग ऑपरेशन दिखाया गया कि किस तरह से बहुसंख्यक समुदाय के लोग अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को किराये में अपना मकान देने में हिचकिचाते हैं, या मना कर देते हैं ।
आखिर इस तरह का न्यूज दिखाकर के आम मानस में क्या साबित करना चाहते हैं । बस इन्हें तो टीआरपी मिल जायेगी, लेकिन आम जनता पर इसका क्या असर पड़ेगा? क्या इनका यह दायित्व नहीं बनता कि यह हमारा कार्य जिम्मेदाराना ढंग से करें । हमें समाज के दिलों को जोड़ना है ना कि तोड़ना । ऐसा नहीं है कि इस स्टिंग ऑपरेशन में दिखाया गया समाज का चेहरा असत्य था । लेकिन इसका एक पहलू था, किसी भी चीज में या किसी भी जगह हमें अच्छाई व बुराई दोनों मिलती है, लेकिन यहां पर तो बाकायदा नाटकीय ढंग से बुराई को समाज में से निचोड़ने की कोशिश की है । और उसे चैनल पर प्रसारित कर हिंदुस्तान की गंगा-जमुनी सभ्यता को दूषित करने की कोशिश की गई है ।
कभी यह लोग इस तरह की खोज क्यों नहीं करते कि यहां समाज में दोनों समुदायों के बीच प्यार व भाईचारे की मिसाल मिलती है । और ऐसा दिखाकर ये देश व समाज के प्रति एक कर्तव्य का भी पालन कर सकते हैं । वो भी ऐसी स्थिति में जब देश में इन दोनों सम्प्रदायों के बीच में कहीं राजनीति, कहीं बाहरी देशों से चलाये गये आतंकवाद आदि हमेशा खटास पैदा करते हैं । जम्मू-कश्मीर की हालत किसी से छुपी हुयी नहीं है । अयोध्या का शान्त व पवित्र स्थान सिर्फ राजनीति के ही कारण दूषित पड़ा हुआ है । ऐसी स्थिति में जब अयोध्या का फैसला आने वाला है , देश आतंक के खतरों को झेल ही रहा है तो ऐसे में आईबीएन सेवन ने इस तरह की खबर देकर आग में घी डालने का काम करा है ।
भारत के गंगा-जमुनी सभ्यता में हिंदू-मुस्लिम करीब १ हजार साल से भी ज्यादा समय से साथ रह रहे हैं, और अगर उनमें एकता व भाईचारा नहीं होता तो इतना लम्बा समय एकसाथ बिता पाना असंभव सी बात है । यह बात अलग है, कि जहां परिवार में एक साथ बैठते हैं तो छोटी-बड़ी शिकायतें होती हैं । जिसका बाहरी कुछ स्वार्थी लोग फायदा उठाकर बरगलाते हैं, और अपने स्वार्थ हेतु माहौल को गंदा करते हैं । जबकि हमारे देश में हिंदू-मुस्लिम भाईचारे की एकता की मिसालें अनगिनत हैं और आये दिन ये अनगिनत मिसालें देखने को मिलती हैं ।
अभी हाल ही में १४ सितंबर को बरनाहल थाना क्षेत्र कटरा मोहल्ले कि एक महिला की बकरी ने शीतला माँ के मन्दिर में घुसकर उनकी मूर्ति क्ष्रतिग्रस्त कर दी, जिसके बाद मुस्लिम समुदाय के कुछ लोगों ने अपने हिंदू भाईयों के लिए एक अनूठी पहल करते हुये, चंदा एकत्रित कर नयी मूर्ति की स्थापना कराई तथा एक जिम्मेदाराना भाईचारे का परिचय दिया ।
इसी तरह से अजमेर में सूफी संत ‘गरीब नवाज’ मोइनुद्दीन चिश्ती का सालाना उर्स हिन्दू-मुस्लिम की जीती-जागती मिसाल पेश करता है, यहां पर पूरी श्रद्धा के साथ देश-विदेश, से कई मजहबों के लोग आते हैं, और ख़्वाज़ा से अपनी दुआ कबूल कराते हैं ।
जम्मू-कश्मीर ने लोगों ने हिन्दू-मुस्लिम भाई-चारे की अनूठी मिसाल कायम की कि यहां के मुट्ठी इलाके के हिंदुओं ने मिलकर कश्मीर के एक मुस्लिम युवक को दफनाने की सारी रस्में अदा कीं आर्थिक तंगी से जूझ रहे आसियां के परिवार का साथ देने के लिए यहां के हिन्दू परिवार के लोग आगे आये । तथा उनकी मदद की ।
इसी तरह उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले के नौबतपुर गांव का संकटमोचन मंदिर जो १५० साल पुराना है, जो हिंदू-मुस्लिम एकता का और भाईचारे का मिसाल बना हुआ है । इस मंदिर में रमज़ान के महीने में मुसलमान रोजा खोलने से पहले की नमाज़ मंदिर में अदा करते हैं और रोज़ा हिंदुओं द्वारा बताए गए विभिन्न प्रकार के व्यंजनों से खोलते हैं ।
Thursday, September 23, 2010
Wednesday, September 22, 2010
हिन्दी का अस्तित्व

हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी 14 तारीख को हिंदी दिवस कुछ हिंदी प्रेमियों के द्वारा याद तो रखा जायेगा । लेकिन दिन प्रतिदिन अंग्रेजी का आकर्षण हिंदी को कहीं ना कहीं से दबाता या तोड़ता-मोड़ता जा रहा है । इसके पीछे बहुत बड़ा कारण यह है कि हिंदी भाषी सदियों से हीनता के शिकार होते चले जा रहे हैं, आज हमारे देश में पुरानी बहुत सारी विद्यायें विलुप्त हो चुकी हैं अगर उसका कुछ अंश मिलता है तो सीधे-साधे शब्दों में समझ में नहीं आता । क्योंकि किसी भी संस्कृति, विद्या एक युग से दूसरे युग तक भाषा पहुंचाने या संवहन का कार्य करती है ।
और हमारे देश में कई सौ साल गुलाम रहने के बाद अलग-अलग भाषाओं और संस्कृति से प्रभावित होने के कारण खुद की भाषा से, खुद की पहचान से कमजोर होता चला गया । और हिंदी भाषियों को हीनता का शिकार बनाता चला गया । जिसके कारण हिंदी दिन-प्रतिदिन एक युग से नये युग तक अपना प्रभाव कमजोर करती जा रही है । हम हिंदी भाषियों के दिमाग में हीनता इस कदर बढ़ गयी है कि हम अपनी चीजों की कमजोरी या अपरिपक्व समझते हैं और हम हीनता के शिकार हिंदी भाषी हिंदी को और हीन करते जा रहे हैं । नये युग में हिंदी का सम्मोहन तभी होगा जब हम हिंदी के साथ अपने को गर्वित महसूस कर सकते हैं । जैसे हिंदी दिन-प्रतिदिन हीन हो रही है, वैसे-वैसे अपनी संस्कृति, सभ्यता या हम भी हीन होते जा रहे हैं ।
हिंदी सिर्फ हमारी भाषा ही नहीं अपितु हमारी पहचान है, और जिसे खोकर हम अपनी पहचान खो रहे हैं । पिछले वर्ष समय दर्पण के सिंतबर अंक में हमने लिखा था- कि जहां हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, जो पितातुल्य हमें हमारी संस्कृति को संजोता, संवारता और विश्व में हमारी पहचान कराता है । अलबत्ता अन्य क्षेत्र की भाषाएं अलग-अलग क्षेत्र के भारतीय लोगों के लिए मात्र भाषा हैं, लेकिन विश्व में पहचान या अस्तित्व का निर्माण राष्ट्र भाषा से ही होता है । हम हिंदी को ना अपनाकर अपनी हीनता को प्रदर्शित करते हैं, यह ठीक वैसे ही है, जैसे कोई नये जमाने का लड़का किसी बड़े लोगों के समाज में जाता है, और अपनी गरीबी छुपाने के लिए किसी दूसरे की कपड़ों को पहनकर अपने को दूसरे समाज का प्रदर्शित करता है । लेकिन उस समाज में गरीब, लाचार फटे कपड़े पहने पिता वेटर के रूप में दिखाई देता है, तो बेटा उस स्थिति में अपने दोस्त, समाज या नये समाज में अपने पिता को पहचानने से ही इंकार कर देता है । आज हम हिंदी के साथ भी कुछ ऐसा ही व्यवहार कर रहे हैं । पर इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि हम अपनी पहचान छुपाकर अंग्रेजीयत का मुखौटा पहनकर कब तक इस झूठे अस्तित्व को जिंदा रख पायेंगे । आईये हम सब मिलकर इस हिंदी दिवस में हिंदी के विकास, फैलाव और उसे गर्व से अपनाने की प्रतिज्ञा लेते हैं ।
और हमारे देश में कई सौ साल गुलाम रहने के बाद अलग-अलग भाषाओं और संस्कृति से प्रभावित होने के कारण खुद की भाषा से, खुद की पहचान से कमजोर होता चला गया । और हिंदी भाषियों को हीनता का शिकार बनाता चला गया । जिसके कारण हिंदी दिन-प्रतिदिन एक युग से नये युग तक अपना प्रभाव कमजोर करती जा रही है । हम हिंदी भाषियों के दिमाग में हीनता इस कदर बढ़ गयी है कि हम अपनी चीजों की कमजोरी या अपरिपक्व समझते हैं और हम हीनता के शिकार हिंदी भाषी हिंदी को और हीन करते जा रहे हैं । नये युग में हिंदी का सम्मोहन तभी होगा जब हम हिंदी के साथ अपने को गर्वित महसूस कर सकते हैं । जैसे हिंदी दिन-प्रतिदिन हीन हो रही है, वैसे-वैसे अपनी संस्कृति, सभ्यता या हम भी हीन होते जा रहे हैं ।
हिंदी सिर्फ हमारी भाषा ही नहीं अपितु हमारी पहचान है, और जिसे खोकर हम अपनी पहचान खो रहे हैं । पिछले वर्ष समय दर्पण के सिंतबर अंक में हमने लिखा था- कि जहां हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, जो पितातुल्य हमें हमारी संस्कृति को संजोता, संवारता और विश्व में हमारी पहचान कराता है । अलबत्ता अन्य क्षेत्र की भाषाएं अलग-अलग क्षेत्र के भारतीय लोगों के लिए मात्र भाषा हैं, लेकिन विश्व में पहचान या अस्तित्व का निर्माण राष्ट्र भाषा से ही होता है । हम हिंदी को ना अपनाकर अपनी हीनता को प्रदर्शित करते हैं, यह ठीक वैसे ही है, जैसे कोई नये जमाने का लड़का किसी बड़े लोगों के समाज में जाता है, और अपनी गरीबी छुपाने के लिए किसी दूसरे की कपड़ों को पहनकर अपने को दूसरे समाज का प्रदर्शित करता है । लेकिन उस समाज में गरीब, लाचार फटे कपड़े पहने पिता वेटर के रूप में दिखाई देता है, तो बेटा उस स्थिति में अपने दोस्त, समाज या नये समाज में अपने पिता को पहचानने से ही इंकार कर देता है । आज हम हिंदी के साथ भी कुछ ऐसा ही व्यवहार कर रहे हैं । पर इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि हम अपनी पहचान छुपाकर अंग्रेजीयत का मुखौटा पहनकर कब तक इस झूठे अस्तित्व को जिंदा रख पायेंगे । आईये हम सब मिलकर इस हिंदी दिवस में हिंदी के विकास, फैलाव और उसे गर्व से अपनाने की प्रतिज्ञा लेते हैं ।
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