Wednesday, September 22, 2010

हिन्दी का अस्तित्व


हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी 14 तारीख को हिंदी दिवस कुछ हिंदी प्रेमियों के द्वारा याद तो रखा जायेगा । लेकिन दिन प्रतिदिन अंग्रेजी का आकर्षण हिंदी को कहीं ना कहीं से दबाता या तोड़ता-मोड़ता जा रहा है । इसके पीछे बहुत बड़ा कारण यह है कि हिंदी भाषी सदियों से हीनता के शिकार होते चले जा रहे हैं, आज हमारे देश में पुरानी बहुत सारी विद्यायें विलुप्त हो चुकी हैं अगर उसका कुछ अंश मिलता है तो सीधे-साधे शब्दों में समझ में नहीं आता । क्योंकि किसी भी संस्कृति, विद्या एक युग से दूसरे युग तक भाषा पहुंचाने या संवहन का कार्य करती है ।

और हमारे देश में कई सौ साल गुलाम रहने के बाद अलग-अलग भाषाओं और संस्कृति से प्रभावित होने के कारण खुद की भाषा से, खुद की पहचान से कमजोर होता चला गया । और हिंदी भाषियों को हीनता का शिकार बनाता चला गया । जिसके कारण हिंदी दिन-प्रतिदिन एक युग से नये युग तक अपना प्रभाव कमजोर करती जा रही है । हम हिंदी भाषियों के दिमाग में हीनता इस कदर बढ़ गयी है कि हम अपनी चीजों की कमजोरी या अपरिपक्व समझते हैं और हम हीनता के शिकार हिंदी भाषी हिंदी को और हीन करते जा रहे हैं । नये युग में हिंदी का सम्मोहन तभी होगा जब हम हिंदी के साथ अपने को गर्वित महसूस कर सकते हैं । जैसे हिंदी दिन-प्रतिदिन हीन हो रही है, वैसे-वैसे अपनी संस्कृति, सभ्यता या हम भी हीन होते जा रहे हैं ।

हिंदी सिर्फ हमारी भाषा ही नहीं अपितु हमारी पहचान है, और जिसे खोकर हम अपनी पहचान खो रहे हैं । पिछले वर्ष समय दर्पण के सिंतबर अंक में हमने लिखा था- कि जहां हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, जो पितातुल्य हमें हमारी संस्कृति को संजोता, संवारता और विश्‍व में हमारी पहचान कराता है । अलबत्ता अन्य क्षेत्र की भाषाएं अलग-अलग क्षेत्र के भारतीय लोगों के लिए मात्र भाषा हैं, लेकिन विश्‍व में पहचान या अस्तित्व का निर्माण राष्ट्र भाषा से ही होता है । हम हिंदी को ना अपनाकर अपनी हीनता को प्रदर्शित करते हैं, यह ठीक वैसे ही है, जैसे कोई नये जमाने का लड़का किसी बड़े लोगों के समाज में जाता है, और अपनी गरीबी छुपाने के लिए किसी दूसरे की कपड़ों को पहनकर अपने को दूसरे समाज का प्रदर्शित करता है । लेकिन उस समाज में गरीब, लाचार फटे कपड़े पहने पिता वेटर के रूप में दिखाई देता है, तो बेटा उस स्थिति में अपने दोस्त, समाज या नये समाज में अपने पिता को पहचानने से ही इंकार कर देता है । आज हम हिंदी के साथ भी कुछ ऐसा ही व्यवहार कर रहे हैं । पर इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि हम अपनी पहचान छुपाकर अंग्रेजीयत का मुखौटा पहनकर कब तक इस झूठे अस्तित्व को जिंदा रख पायेंगे । आईये हम सब मिलकर इस हिंदी दिवस में हिंदी के विकास, फैलाव और उसे गर्व से अपनाने की प्रतिज्ञा लेते हैं ।

No comments:

Post a Comment