Wednesday, April 7, 2010

अप्रैल मध्योपरान्त गर्मी बढ़ेगी

[७ अप्रैल से १३ अप्रैल थोड़ा मौसम ठंडा रहेगा । १३ अप्रैल और २८-२९ अप्रैल को आंधी और वर्षा के योग, अप्रैल मध्योपरान्त गर्मी बढ़ेगी । ]

वर्तमान में अभी अप्रैल के प्रारम्भ के दिनों में ही गर्मी काफी तेज है इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि आने वाले दिनों में गर्मी में तेज होगी क्योंकि अभी तो सूर्य मीन संक्रांति में है लेकिन जैसे ही सूर्य मेष संक्रान्ति में जाएगा गर्मी काफी बढ़ेगी । क्योंकि ज्योतिष में मीन राशि जलज राशि होती है और मेष राशि अग्नि तत्व की राशि होती है इस कारण १४ अप्रैल २०१० के बाद तेज गर्मी होगी जो दिल्ली व मध्यवर्ती, व पूर्वोत्तर भारत के लिए काफी गरम समय का प्रारम्भ होगा और मई के अन्तिम सप्ताह सिंह के मंगल में प्रवेश के उपरान्त गर्मी काफी तेज होगी और अपने चरम पर होगी । लेकिन अभी अप्रैल में ७-८ तारीख को बुद्ध व शुक्र के भरणी नक्षत्र में प्रवेश करते ही गर्मी से थोड़ा राहत मिलेगी और कुछ पूर्वोत्तर क्षेत्रों में वर्षा होगी और १३ अप्रैल को मीन का सूर्य और चन्द्रमा होने से पूर्वोत्तर क्षेत्रों व पश्‍चिम-दक्षिण क्षेत्रों में भीषण वर्षा व आंधी आ सकती है । इसी प्रकार २८-२९ अप्रैल को भी मेष राशि में सूर्य व बुद्ध की युति तथा चन्द्रमा की पूर्णिमा की स्थिति भी तेज हवा के साथ वर्षा के आसार पूर्वी क्षेत्रों में दर्शाता है । इस प्रकार हम कह सकते हैं कि अप्रैल मध्योपरान्त गर्मी बढ़ेगी लेकिन १३ अप्रैल और २० अप्रैल २०१० की वर्षा थोड़ी गर्मी से राहत देगी ।

यह कहानी फिल्मी है

शोएब और सानिया का प्यार इस कदर परवान चढ़ा कि सारी दुनिया में चर्चाएं व विरोध आने लगे । उधर सानिया ने शोएब के खातिर अपने बचपन की दोस्ती व सगाई तोड़ी तो उधर शोएब मियां ८ वर्ष पुरानी अपनी पहली पत्‍नी आयशा को पत्‍नी मानने से ही इनकार कर बैठे । यानि आग दोनों तरफ बराबर है । शोएब सानिया व आयशा की ट्रायंगल लव स्टोरी पति-पत्‍नी और वो की तरफ पूर्णतः फिल्मी है । अक्सर किसी कहानी या फिल्म में कुछ दृष्टान्त बीतने के बाद ट्‍विस्ट आता है परन्तु यह कहानी प्रारम्भ होते ही ट्‍विस्ट सस्पेन्स व विवाद को साथ-साथ लेकर आगे बढ़ रही है । मार्च के अन्तिम दिनों में मीडिया में यह खबर कि सानिया मिर्जा का शोएब मलिक के साथ १५ अप्रैल को विवाह होगा । इस चर्चा के साथ कहानी प्रारम्भ हुई । इस चर्चा की आग इस तरह फैली कि इसकी प्रतिक्रियायें और विरोध मिलने लगे । विरोध इस तरह से जैसे कब्र में से मुर्दे उठकर बोलना प्रारम्भ कर दें । आयशा का भी विरोध कुछ इसी प्रकार का है । पिछले ८ सालों में आयशा को ना ही शोएब मलिक की जरूरत हुई और ना ही अपना विवाह साबित करने की जरूरत हुई । इधर सानिया भी शोएब के प्यार में इस कदर पागल व उतावली हो गई हैं कि सारी बातों को ताख पर रखकर वह पूर्ण रूप से शोएब का साथ दे रही हैं । और सच ही तो है फिल्मों में अक्सर गानों में यह शब्द सुनने को मिलते हैं कि जग छूटे, रब रूठे पर प्यार न छूटे । सानिया का भी यही हाल है । यही कारण है कि वह बना बनाया कैरियर व एक अन्तर्राष्ट्रीय खिलाड़ी की पहचान को ताख पर रखकर शोएब को पाना चाहती हैं । शोएब भी सानिया को पाने के लिए हर विवाद को झेलने के लिए प्रयासरत हैं तभी तो इतने विवादों के बीच पाकिस्तान छोड़ हिंदुस्तान में सानिया के घर पहुँच आये जहाँ पर सारे हिंदू संगठन तो विरोध कर ही रहे हैं साथ ही साथ आयशा द्वारा दर्ज कराये गये केसों में यह आशंका होते हुए भी कि उन्हें जेल हो सकती है इस सब बातों को दर किनार करके दूल्हे मियां दुल्हन से मिलने व विवाह की तैयारी करने हिन्दुस्तान चले आये । देखना ये है कि पति, पत्‍नी और वो की इस लड़ाई में पत्‍नी और वो का परिणाम क्या निकलता है कौन वो साबित होता है ।

सानिया का प्यार अंधा ही नहीं खुदगर्ज भी है ।

[ जिस देश की जनता ने टेनिस जैसे बड़े खेल में सानिया राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करने का गौरव दिया है । यह ऐसा गौरव है जहां सानिया व्यक्‍ति नहीं देश के गौरव के रूप में जानी जाती हैं तो फिर वहां वे व्यक्‍तिगत भावनाओं में आकर करोड़ों जनता की भावनाओं को चोट करते हुए वे ऐसे देश से रिश्ता कैसे जोड़ सकती हैं जहाँ से भारत को आजादी से अब तक तरह-तरह के घाव मिलते रहते हैं क्योंकि सानिया मिर्जा की जिन्दगी उनकी अब व्यक्‍तिगत जिन्दगी नहीं है । यदि इन सब के बावजूद सानिया शोएब मलिक से विवाह करती हैं तो सानिया भारतीय टेनिस के साथ-साथ भारत से भी अपना सारा रिश्ता तोड़ लेवें । यदि ऐसा नहीं करती तो भारत की जनता उनसे शादी के बाद सारा रिश्‍ता तोड़ लेगी । ]

सच कहते हैं कि प्यार अंधा होता है यह बात वर्तमान में सानिया मिर्जा के जीवन में हकीकत होते नजर आ रही है । सानिया का प्यार अंधा होने के साथ-साथ खुदगर्ज भी हो गया है । सानिया शोएब मलिक के प्यार में इस कदर पागल हो गई हैं कि अपना सफल कैरियर, अपना भविष्य और अपने गरिमा मई पहचान को भी ताक पर रख दिया है । क्योंकि यह जग जाहिर कि हिन्दुस्तान का समाज या मुस्लिम समाज जितना खुलेपन ढंग से जीवन देता है उतना पाकिस्तान में संभव नहीं है । पाक के जंग में शोएब मलिक की मां नूर मलिक के हवाले से कहा गया है कि वह शादी के बाद सानिया को पाकिस्तान में घर बसाते देखना चाहती हैं । उन्हें सानिया का स्कर्ट पहनना, टेनिस खेलना विदेशी दौरा करना और गैर मर्दों से घुलना-मिलना बिल्कुल पसन्द नहीं है । इससे और भी स्पष्ट हो जाता है कि सानिया और सानिया के परिजनों का बयान कि सानिया शादी के बाद टेनिस खेलती रहेंगी यह संभव नहीं लगता है और एक बार यह मान भी लिया जाए तो क्या सानिया के शादी के बाद जब सानिया भारत के लिए कोई बड़ा मैच खेलने जाएंगी तब हिंदुस्तान की जनता पहले की भांति विश्‍वास, प्यार व शुभकामनाओं के साथ सानिया को खेलने के लिए विदा कर पाएगी । क्या जब कभी भारत-पाक के बीच क्रिकेट मैच होगा तब सानिया अपने पति के जीत की कामना करेंगी या फिर भारत के लिए जीत की कामना करेंगी । पाक अखबारों ने वहाँ के टेनिस एसोसिएशन के मुखिया दिलावर अब्बास के हवाले खबर दी है कि शादी के बाद सानिया पाक टेनिस को बढ़ावा देने में अपना योगदान देंगी जबकि “हमारा समाज” भारतीय टेनिस एसोसिएशन के महासचिव अनिल खन्‍ना के हवाले से यह कहना है कि सानिया और उसके परिजनों ने शादी के बाद भी राष्ट्रमंडल खेलों, एशियन गेम्स, फेडरेशन और लंदन ओलम्पिक में भारत का प्रतिनिधित्व करने का वादा किया है । पाक का नाम आते ही अपने स्वभाव के अनुरूप शिव सेना और अन्य हिंदू संगठन इस बात को आग की तरह तूल पकड़ाएंगे कि शादी के बाद सानिया पाकिस्तानी हो जाएंगी तो वह भारत के लिए कैसे खेल पाएंगी? भारत और पाक के अखबारों में मुंबई, बरेली और तमिलनाडु में हिन्दू संगठन डांस सानिया के शादी के विरोध में उनका पोस्टर जलाए जाने की खबर आई है और ऐसा हो भी क्यों ना क्योंकि जिस देश की जनता ने सानिया को सम्मान, शोहरत और उच्च स्तर अव्वल दर्जे का नागरिक होने का गौरव दिया है । जिस देश की जनता ने टेनिस जैसे बड़े खेल में सानिया राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करने का गौरव दिया है । यह ऐसा गौरव है जहां सानिया व्यक्‍ति नहीं देश के गौरव के रूप में जानी जाती हैं तो फिर वहां वे व्यक्‍तिगत भावनाओं में आकर करोड़ों जनता की भावनाओं को चोट करते हुए वे ऐसे देश से रिश्ता कैसे जोड़ सकती है । जहाँ से भारत को आजादी से अब तक तरह-तरह के घाव मिलते रहते हैं क्योंकि सानिया मिर्जा की जिन्दगी उनकी अब व्यक्‍तिगत जिन्दगी नहीं है । यदि इन सब के बावजूद सानिया शोएब मलिक से विवाह करती हैं तो सानिया भारतीय टेनिस के साथ-साथ भारत से भी अपना सारा रिश्ता तोड़ लेवें । यदि ऐसा नहीं करती तो भारत की जनता उनसे शादी के बाद सारा रिश्‍ता तोड़ लेगी । वैसे इतने विवादों के बीच हो रहे विवाह का वैवाहिक जीवन भी काफी मुश्किलों भरा होगा फिर भी ईश्‍वर सानिया मिर्जा के विवाह को सुखद बनावे ।






नक्सलवाद कोई आतंकवाद नहीं बल्कि असन्तोष का प्रतिशोध है

आज नक्सलियों द्वारा छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले के घने जंगलों में केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल के जत्थे पर हजार की संख्या में नक्सलवादियों ने अचानक हमला बोला, जिसमें ७५ जवान अब तक शहीद हो चुके हैं, जबकि ८ अन्य जवान घायल भी हैं । मरने वालो में एक उपकमाण्डर और एक सहायक कमाण्डर शामिल हैं । पिछले कई सालों से हमारा देश पश्‍चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़, बिहार आदि कई राज्यों, जगहों पर नक्सलवादियों एवं माओवादिओं का कहर छाया हुआ है । जिसमें अक्सर आम जनता व सुरक्षा बलों को अपनी जान गंवानी पड़ती है । हालांकि वर्तमान में गृहमंत्री पी. चिदम्बरम्‌ सजगता व दृढ़तापूर्ण प्रयास के तहत आपरेशन ग्रीन हंट चलाया जाना ये कहा जा सकता है कि सरकार अब जगी है व सजग हुई है, लेकिन क्या सरकार द्वारा चलाये गये यह प्रयास पूर्णतः सार्थक साबित होंगे । आपरेशन ग्रीन हंट में एकबार सैन्य कार्रवाई द्वारा या सुरक्षा बलों द्वारा एक बार हम इन्हें खदेड़ने में सफल हो भी जाते हैं तो क्या इस समस्या का जड़ से निदान हो सकेगा । किसी भी विद्रोह का जन्म असन्तोष से होता है और असन्तोष हमेशा असन्तुलन से पैदा होता है । निस्संदेह देश के अन्दर एक खतरनाक उग्रवादी की शक्ल लिये अपने ही बीच के भाई बन्धु या देश के नागरिक इस मिशन पर जाने के लिए इसलिए जाने को उतारू हैं, क्योंकि कहीं न कहीं हमारे देश, समाज व कानून की व्यवस्था के प्रति असंतोष पैदा हुआ है । देखा जाय तो देश का अधिकतर वही क्षेत्र इनसे प्रभावित है जहाँ पर आदिवासी पिछड़े वर्ग एवं गरीब जनजाति रहती है । कहा जाता है कि जब सज्जन व्यक्‍ति आक्रोश व प्रतिशोध में जलता है तो उससे बड़ा दुर्जन कोई नहीं होता है और वह भयावह स्थिति को जन्म देता है । उदाहरण के तौर पर देखा जाय तो हाथी बड़ा ही सीधा, धैर्यशाली व शांत जानवर माना जाता है, परन्तु जब वो यातनावश पागलपन का रूप धारण करता है तो उससे खतरनाक कोई जानवर नहीं होता है । ये पिछड़ी जनजातियां भी समाज की दबी कुचली आमतौर पर सीधी और हर स्थिति में संतोष करने वाली ही होती हैं लेकिन जब कभी भी इनके असंतोष को कुछ चालाक व अहिंसक प्रवृत्ति के व्यक्‍ति बर्गलाकर आक्रोश का रूप देते हैं तो यही लोग हिंसक बन जाते हैं और प्रतिशोध की ज्वाला में जलते हुए नक्सलवाद के सिपाही बन जाते हैं । हालांकि इन्हें संतुष्टि नक्सलवाद के सिपाही का रूप लेने से भी नहीं मिलती और चालाक व स्वार्थी प्रवृत्ति के लोगों के मोहरे ही बनकर रह जाते हैं । अपनी जिन्दगी को इतना खतरनाक व घातक रूप देने के बाद भी न ही इन्हें कोई लाभ होता है और ना ही समाज को । ये अपने प्रतिशोध से केवल आक्रोश और हिंसा ही फैलाते हैं । सरकार को भी इस मुहिम को जड़ से समाप्त करने के लिए इनके मनोभाव को समझना पड़ेगा । इन्हें व्यस्थित सम्मान के द्वारा एक सम्मानित जीवन देना होगा तभी ये अपने द्वारा उठाये गये कदम को गलत समझकर एक नई राह पर अच्छे देश के सिपाही बनकर मन में देश के प्रति आस्था जगा पायेंगे । इस नक्सलवाद को जन्म देने में सरकार की वो कुरीतियां भी जिम्मेदार हैं जो एस. सी व एस. टी वर्गों के कथित हितों के लिए काम करने वाले सभी संवैधानिक सरकारी, संसदीय, गैर सरकारी एवं सामाजिक व प्रकोष्ठ, पर देश भर में केवल एस. सी के लोगों ने कब्जा जमाया कि आदिवासियों के हित दलित नेतृत्व के यहां गिरवी हो गये हैं । दलित ने छात्र ने एससी एवं एसटी. के हितों की रक्षा एवं संरक्षण के नाम पर केवल एससी के हितों का ध्यान रखा । केन्द्र या राज्य की सरकारों द्वारा यह तक नहीं पूछा जाता कि एससी एवं एस टी वर्गों के अलग-अलग कितने लोगों या जातियों या समाजों का उत्थान किया गया । ९ प्रतिशत मामलों में इन दोनों वर्गों की रिपोर्ट भेजने वाले और उनका सत्यापन करने वाले दलित होते हैं, जिन्हें आमतौर पर इस बात से कोई सरोकार नहीं होता कि आदिवासियों के हितों का संरक्षण हो रहा है या नहीं और आदिवासियों के लिए स्वीकृत बजट दलितों के हितों पर क्यों खर्चा जा रहा है? इस तरह से देश की इन कुव्यवस्थाओं को सुधारना होगा और सही मायने में आदिवासियों का हक उन तक पहुँचाना होगा कि वे भी इस देश के सशक्‍त और सम्माननीय नागरिक हैं । और सभी नागरिकों की तरह इस देश को उन की भी जरूरत है । किसी भी आक्रोश, असंतोष का हल प्रतिशोध नहीं होता और निर्दोष व आम जनता का नुकसान हो सकता है । ऐसी स्थिति में उन्हें सही मार्गदर्शन सही रास्ते व राहत की नितान्त आवश्यकता है । सभी मीडिया को एकत्रित होकर इन नक्सलियों के दिल में आत्मसमर्पण व सही रास्ते पर चलने का भाव जगाना चाहिए । मीडिया व सरकार मिलकर इनके दिलों में खोया हुआ विश्‍वास वापस पाने की चेष्टा करें तो नक्सलवाद व माओवाद जड़ से ही समाप्त नहीं होगा, अपितु कभी दुबारा जन्म नहीं लेगा । क्योंकि यह नक्सली बाहर से आये दुश्मन नहीं बल्कि हमारे देश के ही भाई-बन्धु हैं जो हम से असंतुष्ट होकर बागी हो गए हैं और दुश्मनों से लड़ा जा सकता है परन्तु अपनो से लड़ेंगे तो अपना ही नुकसान करेंगे ।

नोटों की माला बी० एस० पी० को, सशक्‍त और प्रसिद्धि दिलाने का हथकण्डा

२५ वर्ष पूर्ण करने के बाद बी० एस० पी० ने अपने मजबूत अस्तित्व का आगाज पूरे देश में कर दिया है । पिछले ३ वर्षों में बी० एस० पी० के नए रूप ने अपना जलवा व अपनी सफलता का अप्रत्याशित जौहर बिखेरा ही है । साथ ही १५ मार्च २०१० को हुए इस महा रैली में मायावती सुप्रीमो ने अपने अड़ियल व हठी स्वभाव को एक बार फिर साबित कर दिया । यह स्वभाव ही इनके ख्याति व मजबूती का आधार है । मायावती अब तक के जीवन में ऐसे कई कारनामे करती आयी हैं जिसमें विपक्षियों को विरोध करने का मौका मिलता है और उस विरोध से मायावती की ख्याति खुद ब खुद बढ़ती रहती है । जैसे कभी नए नए जिले बनाये, तो कभी मूर्त्तियाँ और पार्क बनाये और इसी कड़ी में इस रैली में नोटों की माला दो बार पहन कर अपने हठी स्वभाव का परिचय दिया । इसे मायवती का हठी स्वभाव कहें या चर्चा व सुर्खियों में आने का हथकंडा कहें । क्योंकि मायावती यह जानती हैं कि विपक्षी जितने भी आरोप लगाएंगे उनकी प्रसिद्धि उतनी बढ़ेगी और उनका दलित वोट बैंक पर विपक्षियों द्वारा विरोध या आरोप पर कोई असर नहीं पड़ता है अपितु और मजबूत होता है । साथ ही सवर्णों को जोड़ने से काफी हद तक सवर्ण वोट बैंक भी बढ़े हैं । आई० बी० एन० ७ के मैनेजिंग एडीटर आशुतोष कहते हैं कि काशीराम हमेशा अस्थिर व मजबूत सफर के पक्षधर थे जिससे ज्यादा प्यारा दलितों को मोबिलाइज करने का मौका मिलेगा । बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के बाद पहली बार किसी शख्स ने उत्तर भारत में दलित तबके में यह उम्मीद जगाई थी ।
अंबेडकर दार्शनिक थे, कांशीराम खाटी राजनीतिज्ञ । अंबेडकर ने सोयी दलित चेतना को जगाने का काम किया लेकिन वो कभी भी कांग्रेस सिस्टम को तोड़ नहीं पाये और इसलिये जब उन्होंने राजनीतिक दल बनाया तो नाकामयाब हो गये, लेकिन कांशीराम ने अंबेडकर की बनायी जमीन को उर्वर किया, जागी दलित चेतना को यह भरोसा दिया कि वो अपना दल बनाकर उच्च जातियों को टक्कर दे सकते हैं । इसके लिए जरूरी था कि कांशीराम उच्च जातियों से टकराव मोल लें और उनके झुकने को विजिबल सिंबल में तब्दील करें । दलित तबका इस असंभव को संभव होते देखे और ये तब तक संभव नहीं होता जब तक कि वो मिलिटेंट आवाज में बात न करें और अपनी मजबूती और उच्च जातियों की मजबूरी का अहसास न करायें ।
लोग कहते हैं कि आज कांशीराम होते तो वो मायावती के काम से असहमत होते । मैं कहता हूं कि वो होते तो मायावती को शाबासी देते । लोग भूल जाते हैं कि मायावती की आक्रामकता ने ही कांशीराम को आकर्षित किया था, उन्हें दलित चेतना में आग लगाने के लिये दब्बू किस्म के लोगों की जरूरत नहीं थी । मायावती को कांशीराम ने प्रशिक्षित किया है और अपने जीते जी उन्हें अपना उत्तराधिकारी बनाया था । आज लोग भले ही मायावती के मूर्तियां और म्यूजियम बनाने पर नाक-भौं सिकोड़ें, इसे पैसा कमाने का तरीका मानें लेकिन बारीकी से देखें तो पता चलेगा यह दलित उभार के प्रतीक हैं और उच्च जातियां इन पर जितना बवाल खड़ा करेंगी बीएसपी उतनी ही मजबूती होगी । इनके बीच मायावती को सिर्फ दलितों को कांशीराम की भाषा में यह संदेश भर देना होगा कि क्या हमें हजारों साल के बाद अपने नेताओं की मूर्तियां बनाने का भी हक नहीं ?
क्या हमें नोटों की माला पहनने का भी अधिकार नहीं है । यह इस सवाल का जवाब है कि मायावती तमाम हो-हल्ले के बीच दोबारा सार्वजनिक मंच से नोटों की माला पहनती हैं और यकीन मानिये कांशीराम इस पर खुश होते नाराज नहीं क्योंकि वो होते तो वो भी यही करते ।

सानिया मिर्जा का विवाह तनाव के बीच सम्पन्‍न होगा

आजकल सानिया मिर्जा का विवाह शोएब मलिक से होने को लेकर चर्चाएं काफी गरम है । पिछली बार भी जब सानिया मिर्जा का विवाह जब तय हुआ था और वो विवाह कुछ ही महिने में टूट गया था इसके पीछे खामियां भी जन्मपत्री में सप्तमास चंद्रमा का मेष राशि में पाया जाना और नौमास चक्र सप्तमस चंद्रमा का आठवें घर में पाया जाना है । सानिया मिर्जा एक ऐसी व्यक्‍तित्व है जो कि देश का प्रतिनिधित्व करती है इसलिए उनसे जुड़ा हर मामला केवल व्यक्‍तिगत नहीं रहता इसका देश के आमजन पर भी विशेष प्रभाव पड़ता है । और आम जनता ये जानने को इच्छुक रहती है कि जो हो रहा है वो किस हद तक सही है । सानिया मिर्जा की जन्मपत्री में नौमान्स चक्र में सप्तमेष के अष्टम्‌ भाव में पाये जाने के कारण विवाह में अवरोधक होता है विशेषकर २६ वर्ष के अवस्था के पूर्व जो भी विवाह जोता है उसमें अड़चने आती है । वर्तमान में भी जो विवाह की तिथि निश्‍चित की गयी है उसमें काफी अड़चनों के योग दिखाई दे रहे हैं । ७ अप्रैल से १५ अप्रैल २०१० में वर्तमान में उत्पन्‍न विवाह पर काबू पा लिया जाये लेकिन १४ अप्रैल के बाद से ग्रहों की स्थिति देखते हुए १५ अप्रैल को विवाह सकुशल सम्पन्‍न हो पायेगा ।
हो सकता है कि ये विवाह टल कर के जुलाई से अगस्त के बीच रख दी जाये क्योंकि १५ अप्रैल को ग्रहों की स्थिति को देखते हुए सप्तमेष चंद्रमा का चतुर्थ भात में शुक्ल बुद्ध व सूर्य के साथ युक्‍ति साथ ही साथ मंगल का बीच का होना इन सभी दृष्टिकोणों से विवाह में अवरोध की आशंकाऐ ज्यादा दिखाई दे रही है । लेकिन इन सब ग्रहों की स्थिति को देखते हुए यदि तनाव के वातावरण में विवाह होता भी है तो शुरू के दिनों में वैवाहिक जीवन में सानिया मिर्जा को कठिनाईयों का सामना करना ही पड़ेगा, और इस विवाह में बड़ा ही विवेकपूर्ण निर्णय लेना चाहिए क्योंकि इससे इसके कैरियर पर भी प्रभाव पड़ेगा । २८-२९ साल केर उम्र के बाद सानिया के लिए वैवाहिक जीवन अवरोधक साबित हो सकता है ।

जून २०१० में बिग बी के आंगन में किलकारियों की आहट सुनाई देगी

सदी के महानायक पिछले दिनों बयान था कि वे ऐश्‍वर्या एवं अभिषेक से आशा करते हैं कि वे जल्द से जल्द घर में नवजात बच्चे की किलकारियाँ सुनावे । और यह हर च्यक्‍ति की प्रबल इच्छा भी होती है कि बेटे की शादी के बाद जल्द से जल्द पोता-पोती के साथ खिलाने का सुख प्राप्त कर सके । ऐसी स्थिति में हम आप सब को बताना चाहेंगे कि बिग बी की यह इच्छा वर्ष्पूर्ण होगी । ऐश्‍वर्या की जन्मपत्री के अनुसार उनके कन्या लग्न के जमांग चक्र मे सन्तानोअत्पत्ति की कोई विशेष दिक्‍कत नही है अलबत्ता विवाह के एक वर्ष तक ऐश व अभिषेक संतात्पत्ति के लिए खुद ही विशेष रूचि नही थी जब उन दोनो ने इसके लिए प्रयास किया तो दोनो की जन्मपत्रियां अवरोध ग्रह वृहस्पति प्रबल और पिछले दिनो गोचर से नीचे का होने के कारण तथा कन्या का शनि वृहस्पति से षडाष्टक योग बनाने के कारण गर्भधारण के योग नही थे परन्तु मई २०१० से मीन राशि का वृहस्पति व कन्या का शनि दोनो आमने-सामने होने के कारण एवं सएक दूसरे को देखने के कारण गर्भधारण के प्रबल योग बन रहे है । सर्वाधिक उम्मीद है कि जून २०१० के अन्तिम सप्ताह में कर्कस्थ शुक्र वृहस्पति से मूल त्रिकोण का सम्बन्ध स्थापित कर और जू २०१० के अन्तिम सप्ताह के पूर्णिमा पड़ने के स्थिति को देखते हुए जून २०१० के अन्तिम सप्ताह १९ जून २०१० से ३० जून २०१० के बीच हर हाल में ऐश गर्भधारण कर जाएंगी । गर्भधारण के कारण अपने पेशे और बालीवुड के गतिविधियों को कम करेंगी लेकिन २०११ के प्रारम्भ में ६ फरवरी मार्च तक सन्तान उत्पति के बाद २४/४/२०१० के बाद ऐश पुनः अपने कैरियर का जौहर तेजी से बिखेरेगी ।

धर्म और विज्ञान का अंतर्द्वन्द


अक्सर धर्म और विज्ञान में अंतर्द्वन्द सुनने को मिलता है । पिछले दिनों एक न्यूज चैनल पर धार्मिक जानकारों एवं वैज्ञानिकों के बीच में एक डिबेट आयोजित किया गया था कि “क्या भगवान का अस्तित्व है?" क्या धर्म समाज की बुराईयों और लोगों की समस्याओं को सुलझा पाने में समर्थ है? इस दिशा में विज्ञान ने क्या अच्छा कार्य किया? देखा जाय तो इस परिचर्या में दोनों ही पक्ष के लोग लड़ते नजर आए लेकिन दोनों में से कोई भी पक्ष एक दूसरे को संतुष्ट नहीं कर पाए । यहाँ सबसे पहले यह तय होना जरूरी है कि पहले विज्ञान आया या धर्म । निःसंदेह इस पूरी सृष्टि का हर जीव भावनाओं की मिट्टी से बना हुआ है । भावना ही सुख या दुख प्रदान करती है । जब कभी भी सामान्य तौर पर सबके अनुकूल या सबके प्रतिकूल कोई भी चीज होती है वहीं पर जीवनशैली में नियमावली की आवश्यकता का जन्म होता है । तभी संस्कृति की उत्पत्ति होती है और इसी संस्कृति से धर्म का निर्माण होता है । या यूँ कहें धर्म और संस्कृति एक दूसरे के परिपूरक हैं । चूँकि सृष्टि का निर्माण, सृष्टि में पल रहे जीवों का निर्माण पूरी प्राकृतिक व्यवस्था पर निर्भर करती है इसलिए हमारी सारी संस्कृति या धर्म प्रकृति के नियमों के अनुरूप होना स्वाभाविक है । यह बात अलग है कि भौतिक कारणों से या कुछ स्वार्थी लोगों द्वारा कुछ आडम्बर धर्म के नाम पर प्रकृति के नियमों के विरूद्ध भी होता है जिसे धर्म का चोला पहनाया जाता है । जैसा कि हमारा धर्म कहता है कि कण-कण में ईश्‍वर का वास है ।
पूर्ण सृष्टि के संचालक ब्रह्मा, विष्णु, महेश हैं । जहाँ तक आज की तारीख में वैज्ञानिक आधार पर देख रहे हैं कि दृष्टिगत आधार पदार्थ मात्र है जिसका मूलकण परमाणु है तथा परमाणु की संरचना तीन सूक्ष्म ऊर्जाओं से बनी है । इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन, न्यूट्रॉन । इन तीनों की संयुक्‍त ऊर्जा से ही पदार्थ की संरचना हुई है । और यही संरचना हमारे, सौरमंडल की भी है और देखा जाय तो हमारे धर्म में ब्रह्मा, विष्णु, महेश के गुणों का जो बखान किया गया है वह प्रोटॉन, न्यूट्रॉन, इलेक्ट्रॉन जैसा ही है । अतः यह साबित होता है कि धर्म की उत्पत्ति से पहले ही धर्म के आधार पर प्रकृति की गहराइयों को खंगालते हुए इंसान की भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु विज्ञान का जन्म हुआ । बल्कि हम यह कहें कि विज्ञान को विज्ञान शब्द का नाम तो बहुत बाद में मिला लेकिन हमारे दिनचर्या और हमारे संस्कृति में बहुत से नियमों का पालन या प्राकृतिक सुविधाओं का उपयोग किया गया है जो पूर्णतः वैज्ञानिक है । विज्ञान हमसे, जीवन मात्र से या प्रकृति से परे नहीं है । वैज्ञानिक आज भी जीवन की उत्पत्ति का सही आधार स्पष्ट करने में असफल ही कहे जाएंगे और अपने सौर मंडल की संरचना में पृथ्वी के जीवन से परे किसी अन्य सौर मंडल की संरचना या किसी अन्य ग्रह पर जीवन की बात हो तो उनकी सारी बातें काल्पनिक आधार पर ही सामने आती हैं और जो कुछ भी सामने आता है चाहे वह धर्म में किसी भी आधार पर हो, पहले ही बताई जा चुकी बात होती है ।
मंगल पर जीवन की बात बार-बार सुनने को मिलती है । यह बात स्पष्ट है कि हमारे सौरमंडल में सूर्य के चारों ओर जो ग्रहों की परिक्रमा हो रही है वह अभिकेन्द्रीय और उत्केन्द्रीय बल के कारण व्यवस्थित तो चल रहे हैं परन्तु हर ग्रह अपनी अच्छी गति के कारण आंतरिक आणविक ऊर्जा के ह्रास का शिकार हो रहा है जिससे ग्रह अपने बाहरी कक्षा की तरफ खिसक रहे हैं और उत्केन्द्रिय बल मजबूत हो रहा है । इस सिद्धान्त की बात करें तो मंगल कभी न कभी आज से हजारों साल पहले इस पृथ्वी वाले कक्षा में परिक्रमा कर रहा था, जिस कक्षा में जीवन के लिए पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन है जो द्रव्य तापमान इत्यादि थे किन्तु उत्केन्द्रीय बलों को मजबूत होने के साथ-साथ मंगल सूर्य से दूर होता गया और तापमान घटता गया इसलिए हम कह सकते हैं कि मंगल पर जीवन था । यह बात धर्मग्रंथों और पौराणिक कथाओं में स्पष्ट दिखाई देती है वहीं पर ग्रह की आयु और सौरमंडल की आयु तक निर्धारित की गई है । वहाँ स्पष्ट रूप से कहा गया है कि एक प्लैनेट की आयु को मनुअंतर कहा गया है और उसको चार युगों में बाँटा गया है । और एक सौरमंडल की आयु को महाकाल बोला गया है । ठीक इसी प्रकार धर्मों में मुख्यतः जितने व्रतों का पालन कराया गया है मुख्य तौर पर नवरात्र हो या अन्य कोई पूर्णिमा का व्रत हो आप देखेंगे कि सारे नवरात्र ऋतु परिवर्त्तन के समय में होते हैं एक ऋतु से दूसरे ऋतु में शरीर को प्रवेश कराने के लिए तथा शरीर को उसके अनुकूल बनाने के लिए नवरात्रि व्रत का चलन किया गया है । यह बात दीगर है कि उसके पीछे देवी या आस्था को मुख्य तौर पर प्रसारित इसलिए किया गया है कि व्यक्‍ति आस्थावान्‌ होकर सही ढंग से नियमों का पालन करें और उससे स्वास्थ्य का लाभ उठावे क्योंकि आस्था या भगवान का भय तो इंसान से कुछ भी पालन करा सकता है लेकिन इंसान को वास्तविक सच्चाई बताई जाएगी तो वह अपने मन को नियंत्रित नहीं कर पाएगा और शुद्ध नहीं कर पाएगा और बिना मन शुद्धि के स्वास्थ्य लाभ नहीं लिया जा सकता ।
इसी प्रकार पूर्णिमा का जो व्रत है उसके पीछे तथ्य यह है कि पूर्णिमा में चंद्रमा पूर्णरूप से प्रभावी होता है और पृथ्वी विशेषकर जल पर प्रभावी है जैसा कि समुद्र में ज्वार भाटा देखने को मिलता ही है । जैसा कि आप जानते हैं इंसान के अन्दर ८५% पानी होता है और इस पर चंद्रमा का प्रभाव काफी तेज होता है इन कारणों से शरीर के अंदर रक्‍त में न्यूरॉन सेल्स काफी क्रियाशील होते हैं और ऐसी स्थिति में इंसान भावविभोर होता है खासकर उन इंसानों के लिए ज्यादा प्रभावी होता है जिन्हें मंदाग्नि रोग होता है या जिनके पेट में चय-उपचय की क्रिया शिथिल होती है । अक्सर सुनने में आता है कि ऐसे व्यक्‍ति की भोजन करने के बाद नशा महसूस करते हैं और नशे में न्यूरॉन सेल्स शिथिल हो जाते हैं जिससे दिमाग का नियंत्रण शरीर पर कम भावनाओं पर ज्यादा केंद्रित हो जाता है । यही कारण है कि पूर्णिमा के समय ऐसे व्यक्‍तियों पर चंद्रमा ज्यादा कुप्रभावी होता है । इस कारण पूर्णिमा व्रत का पालन रखा गया है । ऐसे अनेक उदाहरण हैं जो हमारे धर्म में पूर्णतः प्राकृतिक हैं साथ ही साथ विज्ञान की उत्पत्ति धर्म के बाद है धर्म से पहले नहीं । हम यह कह सकते हैं कि सांस्कृतिक और धार्मिक रूप से इंसान को मजबूत होने के बाद भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए विज्ञान शब्द नाम दिया गया है जबकि इंसान के जीवन की उत्पत्ति के साथ-साथ हर कदम हर क्षण पर उसके अंदर संस्कृति, विज्ञान आदि का विकास निरंतर होता रहा है हम यह भी कह सकते हैं कि विज्ञान उसके संस्कृति का ही एक अंग है जो भौतिक रूप से काफी उत्कृष्ट रूप ले लिया है । जहाँ तक भगवान की बात है तो यह प्रकृति ही भगवान है । इस प्रकृति का वह सूक्ष्मतम आधार जो हम ऊर्जा के नाम से जानते हैं (इलेक्ट्रॉन प्रोटॉन, न्यूट्रॉन) धार्मिक आधार पर ब्रह्मा, विष्णु, महेश या फिर हम कह सकते हैं तीन शक्‍ति प्लस माइनस और न्यूट्रल ।
इन्हें जिस नाम से पुकारें यही हमारे सृष्टि या जीवन के आधार हैं । हाँ साथ ही यह भी कहेंगे कि यह एक व्यवस्थित तंत्र है जो हमारे जीवन को व्यवस्थित ढंग से संतुलित किए हुए है । अच्छा या बुरा होना उनकी व्यवस्थाओं में सामाहित है । वह किसी की इच्छा पर निर्भर नहीं करता है । भगवान हमारी द्वारा ही बनाया गया एक आस्थावान शब्द है, जिससे हम भावनात्मक रूप से ऊर्जावान होते हैं जिसके समक्ष हम अपने आप से ही बात करते हैं और अपने आपको ही प्रेरणा देते हैं । यह शब्द हमारे जीवन में ना रहे तो हम अपने आप को बहुत ही असहाय और अकेला महसूस करेंगे । क्योंकि हम मानते हैं कि हमें कोई व्यवस्थित रूप से चला रहा है और सत्य है कि जिन शक्‍तियों का जिक्र हमने उपरोक्‍त पंक्‍तियों में किया है वही हमे चला रहा है । यह वैज्ञानिक रूप में उतना ही प्रमाणित है जितना की धार्मिक आधार पर चाहे हम उसे भगवान कहें या हम काल्पनिक आधार पर भगवान का कोई अलग रूप अपने मनःमस्तिष्क में बनावें, परन्तु हम सभी के मन में यह नाम जीवित रहता है जिससे हम बात भी करते हैं शिकायत भी करते हैं आग्रह भी करते हैं और अपनी सारी अच्छाई- बुराई उसको समर्पित करते हुए अपने को दोषमुक्‍त कर नई ऊर्जा का संचार करते हैं ।
- पं० कृष्णगोपाल मिश्रा