Wednesday, April 7, 2010

नक्सलवाद कोई आतंकवाद नहीं बल्कि असन्तोष का प्रतिशोध है

आज नक्सलियों द्वारा छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले के घने जंगलों में केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल के जत्थे पर हजार की संख्या में नक्सलवादियों ने अचानक हमला बोला, जिसमें ७५ जवान अब तक शहीद हो चुके हैं, जबकि ८ अन्य जवान घायल भी हैं । मरने वालो में एक उपकमाण्डर और एक सहायक कमाण्डर शामिल हैं । पिछले कई सालों से हमारा देश पश्‍चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़, बिहार आदि कई राज्यों, जगहों पर नक्सलवादियों एवं माओवादिओं का कहर छाया हुआ है । जिसमें अक्सर आम जनता व सुरक्षा बलों को अपनी जान गंवानी पड़ती है । हालांकि वर्तमान में गृहमंत्री पी. चिदम्बरम्‌ सजगता व दृढ़तापूर्ण प्रयास के तहत आपरेशन ग्रीन हंट चलाया जाना ये कहा जा सकता है कि सरकार अब जगी है व सजग हुई है, लेकिन क्या सरकार द्वारा चलाये गये यह प्रयास पूर्णतः सार्थक साबित होंगे । आपरेशन ग्रीन हंट में एकबार सैन्य कार्रवाई द्वारा या सुरक्षा बलों द्वारा एक बार हम इन्हें खदेड़ने में सफल हो भी जाते हैं तो क्या इस समस्या का जड़ से निदान हो सकेगा । किसी भी विद्रोह का जन्म असन्तोष से होता है और असन्तोष हमेशा असन्तुलन से पैदा होता है । निस्संदेह देश के अन्दर एक खतरनाक उग्रवादी की शक्ल लिये अपने ही बीच के भाई बन्धु या देश के नागरिक इस मिशन पर जाने के लिए इसलिए जाने को उतारू हैं, क्योंकि कहीं न कहीं हमारे देश, समाज व कानून की व्यवस्था के प्रति असंतोष पैदा हुआ है । देखा जाय तो देश का अधिकतर वही क्षेत्र इनसे प्रभावित है जहाँ पर आदिवासी पिछड़े वर्ग एवं गरीब जनजाति रहती है । कहा जाता है कि जब सज्जन व्यक्‍ति आक्रोश व प्रतिशोध में जलता है तो उससे बड़ा दुर्जन कोई नहीं होता है और वह भयावह स्थिति को जन्म देता है । उदाहरण के तौर पर देखा जाय तो हाथी बड़ा ही सीधा, धैर्यशाली व शांत जानवर माना जाता है, परन्तु जब वो यातनावश पागलपन का रूप धारण करता है तो उससे खतरनाक कोई जानवर नहीं होता है । ये पिछड़ी जनजातियां भी समाज की दबी कुचली आमतौर पर सीधी और हर स्थिति में संतोष करने वाली ही होती हैं लेकिन जब कभी भी इनके असंतोष को कुछ चालाक व अहिंसक प्रवृत्ति के व्यक्‍ति बर्गलाकर आक्रोश का रूप देते हैं तो यही लोग हिंसक बन जाते हैं और प्रतिशोध की ज्वाला में जलते हुए नक्सलवाद के सिपाही बन जाते हैं । हालांकि इन्हें संतुष्टि नक्सलवाद के सिपाही का रूप लेने से भी नहीं मिलती और चालाक व स्वार्थी प्रवृत्ति के लोगों के मोहरे ही बनकर रह जाते हैं । अपनी जिन्दगी को इतना खतरनाक व घातक रूप देने के बाद भी न ही इन्हें कोई लाभ होता है और ना ही समाज को । ये अपने प्रतिशोध से केवल आक्रोश और हिंसा ही फैलाते हैं । सरकार को भी इस मुहिम को जड़ से समाप्त करने के लिए इनके मनोभाव को समझना पड़ेगा । इन्हें व्यस्थित सम्मान के द्वारा एक सम्मानित जीवन देना होगा तभी ये अपने द्वारा उठाये गये कदम को गलत समझकर एक नई राह पर अच्छे देश के सिपाही बनकर मन में देश के प्रति आस्था जगा पायेंगे । इस नक्सलवाद को जन्म देने में सरकार की वो कुरीतियां भी जिम्मेदार हैं जो एस. सी व एस. टी वर्गों के कथित हितों के लिए काम करने वाले सभी संवैधानिक सरकारी, संसदीय, गैर सरकारी एवं सामाजिक व प्रकोष्ठ, पर देश भर में केवल एस. सी के लोगों ने कब्जा जमाया कि आदिवासियों के हित दलित नेतृत्व के यहां गिरवी हो गये हैं । दलित ने छात्र ने एससी एवं एसटी. के हितों की रक्षा एवं संरक्षण के नाम पर केवल एससी के हितों का ध्यान रखा । केन्द्र या राज्य की सरकारों द्वारा यह तक नहीं पूछा जाता कि एससी एवं एस टी वर्गों के अलग-अलग कितने लोगों या जातियों या समाजों का उत्थान किया गया । ९ प्रतिशत मामलों में इन दोनों वर्गों की रिपोर्ट भेजने वाले और उनका सत्यापन करने वाले दलित होते हैं, जिन्हें आमतौर पर इस बात से कोई सरोकार नहीं होता कि आदिवासियों के हितों का संरक्षण हो रहा है या नहीं और आदिवासियों के लिए स्वीकृत बजट दलितों के हितों पर क्यों खर्चा जा रहा है? इस तरह से देश की इन कुव्यवस्थाओं को सुधारना होगा और सही मायने में आदिवासियों का हक उन तक पहुँचाना होगा कि वे भी इस देश के सशक्‍त और सम्माननीय नागरिक हैं । और सभी नागरिकों की तरह इस देश को उन की भी जरूरत है । किसी भी आक्रोश, असंतोष का हल प्रतिशोध नहीं होता और निर्दोष व आम जनता का नुकसान हो सकता है । ऐसी स्थिति में उन्हें सही मार्गदर्शन सही रास्ते व राहत की नितान्त आवश्यकता है । सभी मीडिया को एकत्रित होकर इन नक्सलियों के दिल में आत्मसमर्पण व सही रास्ते पर चलने का भाव जगाना चाहिए । मीडिया व सरकार मिलकर इनके दिलों में खोया हुआ विश्‍वास वापस पाने की चेष्टा करें तो नक्सलवाद व माओवाद जड़ से ही समाप्त नहीं होगा, अपितु कभी दुबारा जन्म नहीं लेगा । क्योंकि यह नक्सली बाहर से आये दुश्मन नहीं बल्कि हमारे देश के ही भाई-बन्धु हैं जो हम से असंतुष्ट होकर बागी हो गए हैं और दुश्मनों से लड़ा जा सकता है परन्तु अपनो से लड़ेंगे तो अपना ही नुकसान करेंगे ।

1 comment:

  1. १- यदि नक्सलवादी चुनाव बहिष्कार की बजाय ये फरमान जारी करते कि दारु, मुर्गा , पैसे के लालच के बदले जो लोग वोट देंगे उन्हें सजा दी जायेगी तो उनकी छवि कुछ सुधर जाती शहरी जनता के सामने !
    २- चुनाव में बेतहाशा खर्चा ग्रामीणो की अनुचित मांग के कारण होती है जिसके कारण जीतने वाला ४.१/२ साल वसूलने में लगाता है और भ्रष्ट कहलाता है , अगले चनाव के लिए भी पैसा इकट्ठा करता है . राजनीति व्यवसाय हो गयी है इनके कारण .
    ३- अच्छे व्यक्ति इसी कारण देश सेवा में आना नहीं चाहते , फिर भ्रष्टाचार , गबन बढता है , और असंतुष्ट लोग क्रांति की बाते सोंचते है पर इन सबकी जड़ पर किसी का ध्यान नहीं है. अत: ग्रामीणो को नियंत्रित करने का काम , उन्हें समझाने का काम नक्सलाइटों को करना चाहिए .यही सच्ची क्रांति की भाषा होगी न कि केवल कुछ छोटे लोगो से मारपीट करना या किसी की हत्या करना , इससे क्रांति नहीं होती
    ४- आज़ादी के समय के अधिकाँश नेता अच्छे थे पर आज उलटा हो गया , शायद ही कोई अच्छा नेता दिखाई दे .
    मेरे ब्लॉग पढ सकते है - मेरे विचार : renikbafna.blogspot.com

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